आज बच्चे पिता को वृद्धाश्रम छोड़ कर आते हैं ! आज बच्चे पिता को वृद्धाश्रम छोड़ कर आते हैं !
है, कश्मकश मगर तू रुक ना अब प्रगति का पथ तेरा रोकने का काल का खेल है! है, कश्मकश मगर तू रुक ना अब प्रगति का पथ तेरा रोकने का काल का खेल है!
मेरे पथ के उस कांटा को पार कर, प्रगति के पथ पर बढ चलूंगी। मेरे पथ के उस कांटा को पार कर, प्रगति के पथ पर बढ चलूंगी।
दबे-कुचले लोगों की आवाज़ को अल्फाज़ के रूप में अंकित करना होगा, दबे-कुचले लोगों की आवाज़ को अल्फाज़ के रूप में अंकित करना होगा,
संस्कारों की संस्कृति भारत भूमि हम सब की जननी यह मातृभूमि! संस्कारों की संस्कृति भारत भूमि हम सब की जननी यह मातृभूमि!
मजबूर है मजदूरी से ही जीवन अपना बिताते है। मजबूर है मजदूरी से ही जीवन अपना बिताते है।